रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण

 

रस

*अर्थ-स्वाद

*काव्य की आत्मा-आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा कहा गया

रस का सर्वप्रथम उल्लेख-भरत मुनि के ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में

भोजन को ग्रहण करते समय हमें अनेक तरह से उसका अलग-अलग स्वाद प्राप्त होता है ठीक इसी तरह काव्य को पढ़ते समय पढ़ने वाले को इसके आनन्द की अनुभूति होती ही इसी को रास कहा गया है अर्थात हम कह सकते है काव्य को पढ़ते समय प्राप्त होने वाला आनन्द रस कहलाता है

परिभाषा

 "विभव,अनुभाव तथा व्यभिचारी भावों के संयोग को रास कहते है"



 

रस तथा उसके स्थायी भाव

रस के भेद तथा उसके स्थायी भाव निम्न प्रकार है


रस के नाम

स्थायी भाव

श्रंगार-रस

करुण-रस

अद्भुत-रस

रौद्र-रस

वीर-रस

हास्य-रस

भयानक-रस

बीभत्स-रस

शांत-रस

वात्सल्य-रस

भक्ति रस

रति

शोक

विस्मय

क्रोध

उत्साह

हास्य

भय

घ्रणा

निर्वेद

स्नेह

अनुराग 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 रस के भेद, लक्षण और उदाहरण

1 श्रंगार- रस

जहाँ नायक-नायिका के सौन्दर्य तथा प्रेम संबंधों का वर्णन किया जाता है श्रंगार रस कहते है

*श्रंगार रस के भेद

A. संयोग श्रृंगार

B. वियोग श्रृंगार

 

A. संयोग श्रृंगार

जहाँ पर नायक-नायिका के मिलन अथवा संयोग  का वर्णन होता है उसे संयोग शृंगार कहते है

जैसे -

कहुँ  बाग तड़ाग तरंगिनी तीर तमाल की छाँह विलोकि भली |

घटिका इक बैढ़ती है सुख पाप बिछाय तहाँ कुस काल थली | |

 

B. वियोग श्रंगार

जहाँ पर नायक-नायिका के बिछरने का वर्णन होता है उसे वियोग श्रंगार कहते है

जैसे-

देखहु तात बसन्त सुहावा |

प्रिया हीन मोहि उर उपजावा | |

 

2 करुण रस

किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के कारण उतपन्न होने वाला दुःख या शोक के भावों के परिपाक को करुण-रस कहा जाता है |

जैसे-

हाय राम कैसे झेले हम अपनी लज्जा अपना शोक |

गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक | |

 

3 अदभुत-रस

अलौकिक,आश्चर्यजनक दृष्य या वस्तु को देख कर मन में उत्पन्न हुआ विस्मय  वैभव,अनुभाव और संचारी भाव से मिलकर परिपक्क्व होता है तब उसे अदभुत-रस कहा जाता है जैसे-

 देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया |

क्षणभर को वह बानी अचेतन, हिल सकी कोमल काया | |

 

4 वीर-रस

युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए  मन  जाग्रत उत्साह नामक स्थायी भाव के जाग्रत होने से जो प्रभावस्वरुप भाव उत्पन्न होता है उसे वीर-रस कहते है |

जैसे-

चढ़ चेतक तलवार उठा, करता भूतल पानी को

राणा प्रताप सर काट-काट, करता सफल जवानी को

 

5 रौद्र-रस

 

रौद्र-रस का स्थायी भाव क्रोध होता है अर्थात किसी व्यक्ति के द्वारा किया गया क्रोध से हुए अपमान की परिपक्क्वता को रौद्र-रस  कहा जाता है |

जैसे-

जो राउर अनुशासन पाऊँ |

कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ | |

काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरि |

सकौं मेरु मूले इव तेरी | |

 

6 हास्य-रस

विकृत वेशभूषा, आकार ,वाणी, चेष्ढा से जो विनोदजन्य उल्लास उत्पन्न होता है उसे हास्य-रस कहते है |

जैसे-

बतरस लालच लाल की,मुरली धरी लुकाय |

सौंह करे भौंहनि हँसे, देने कहै नटि जाय | |

 

7 भयानक-रस

 

किसी भयानक दृश्य के देखने से उत्पन्न बाह्य की परिपक्वता को भयानक-रस कहते है |

जैसे-

बालधी विशाल,विकराल,ज्वाला-जाल मानौ, लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है |

कैधों व्योम बिद्धिका भरे है भूरि धूमकेतु, वीर रस वीर तरवारि सी उधारी है | |

 

8 बीभत्स-रस

घ्रणा का स्थायी भाव जब विभाव,अनुभाव और संचारी भाव से परिपक्कवावस्था में होता है उसे बीभत्स-रस  कहते है |

जैसे-

आँखे निकाल उड़ जाते है,क्षन भर उड़ कर जाते है |

शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला,चभला कर खाते है | |

 

9 शान्त-रस

निर्देव परिपक्वतावस्था को शान्त-रस कहते है |

 

10 वात्सल्य-रस

वात्सल्य-रस का तात्पर्य छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता तथा सगे सम्बन्धियों के प्रेम और ममता भरे भाव से है |

 

11 भक्ति-रस

ईश्वर के प्रति भक्ति भावना के वर्णन को भक्ति-रस कहते है |

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